रूस-यूक्रेन युद्ध विराम वार्ता: सऊदी अरब बैठक के बाद बदलते समीकरण

Published by :- Roshan Soni
Updated on: Wednesday, 19 Feb 2025

रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल पूरे होने वाले हैं और इसी बीच सऊदी अरब में अमेरिका और रूस के बीच महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में यूक्रेन शामिल नहीं था, जिससे इसकी गंभीरता और भी बढ़ गई। इस ब्लॉग में हम इस बैठक के मुख्य बिंदुओं, रूस और अमेरिका के रुख, यूरोप की भूमिका और संभावित भविष्य को विस्तार से समझेंगे।

बैठक में क्या हुआ?

रूस-यूक्रेन युद्ध विराम वार्ता: सऊदी अरब बैठक के बाद बदलते समीकरण
Credit as :- Social Media

 

रियाध में हुई बैठक करीब साढ़े चार घंटे चली, जिसमें रूस ने स्पष्ट रूप से कहा कि यूक्रेन में नाटो की तैनाती अस्वीकार्य है। रूस लंबे समय से नाटो के विस्तार को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता रहा है। वहीं, अमेरिका ने इस वार्ता के माध्यम से रूस के साथ संभावित समझौते की संभावनाओं पर चर्चा की।

रूस का स्पष्ट संदेश: नाटो पीछे हटे

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिका को दो टूक संदेश दिया कि यदि नाटो सैनिक यूक्रेन में तैनात होते हैं, तो यह रूस के लिए अस्वीकार्य होगा। रूस का मानना है कि नाटो का विस्तार ही इस युद्ध की सबसे बड़ी जड़ है। लावरोव ने तो यह भी कह दिया कि यदि जो बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की पहल न की होती, तो यह युद्ध शुरू ही नहीं होता।

नाटो: 4 अक्षरों में छिपा रूस की नाराजगी का कारण

नाटो (NATO) 1949 में अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा स्थापित हुआ था। इसका उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा था, लेकिन शीत युद्ध के दौरान यह सोवियत संघ के खिलाफ सैन्य गठबंधन बन गया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी नाटो का पूर्वी विस्तार जारी रहा, जिससे रूस की चिंताएं बढ़ गईं।

यूरोप की भूमिका: प्रतिबंधों के बावजूद व्यापार जारी

यूरोप ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, लेकिन इसके बावजूद उसने 2023 में रूस से रिकॉर्ड मात्रा में LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) खरीदी। यूरोप अब एक दुविधा में है – एक तरफ वह रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाना चाहता है, तो दूसरी तरफ ऊर्जा आपूर्ति को बनाए रखने की उसकी मजबूरी है।

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की घटती लोकप्रियता

शुरुआती दौर में वोलोदिमीर जेलेंस्की को एक करिश्माई नेता माना जा रहा था, लेकिन युद्ध की लंबी अवधि ने उनकी लोकप्रियता को प्रभावित किया है। यूक्रेनी जनता रूस के खिलाफ झुकने को तैयार नहीं है, लेकिन लंबे समय तक चले युद्ध ने देश को थका दिया है।

अब आगे क्या?

  1. क्या रूस-अमेरिका में समझौता होगा? – अगर वार्ता सफल रहती है, तो दोनों देशों के संबंधों में सुधार हो सकता है।
  2. क्या नाटो पीछे हटेगा? – यह सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि रूस की मुख्य मांग यही है।
  3. यूरोप का अगला कदम क्या होगा? – यूरोप को तय करना होगा कि वह रूस के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखेगा या यूक्रेन का समर्थन करेगा।
  4. ट्रंप की वापसी से क्या फर्क पड़ेगा? – अगर डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में लौटते हैं, तो रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका की नीति में बदलाव आ सकता है।

निष्कर्ष

रियाध में हुई बैठक संभावित शांति वार्ता का पहला कदम हो सकती है। अमेरिका और रूस के बीच बातचीत की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन यूक्रेन इस वार्ता से असंतुष्ट है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नाटो और अमेरिका रूस की मांगों को मानते हैं या यूक्रेन को और समर्थन देते हैं।

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