Published by: Roshan Soni
Updated on: Tuesday, 07 Jan 2025
अमेरिका का हालिया रुख: भारत के साथ न्यूक्लियर संबंधों पर विस्तार से जानकारी
1. जे. सुलेमान का भारत दौरा: हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जे. सुलेमान भारत दौरे पर आए। उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की बात कही। उन्होंने भारत के NSA अजीत डोभाल के साथ मुलाकात की और दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर कोऑपरेशन को आगे बढ़ाने पर चर्चा की।
2. 1998 के न्यूक्लियर प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि:
- 1998 में भारत ने पोखरण में ऑपरेशन शक्ति के तहत न्यूक्लियर टेस्ट किए थे।
- इसके बाद अमेरिका ने भारत पर कई न्यूक्लियर सैंक्शंस लगाए थे, जिनमें भारत की प्रमुख संस्थाओं जैसे Bhabha Atomic Research Centre (BARC), Indira Gandhi Centre for Atomic Research (IGCAR), और India Rare Earths Limited को ब्लैकलिस्ट किया गया था।
- अब तक अमेरिका ने इन प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाया नहीं है।
3. हालिया वादे और वास्तविकता:
- जे. सुलेमान ने भारत दौरे पर यह बयान दिया कि अमेरिका जल्द ही कुछ प्रतिबंध हटाएगा।
- हालांकि, कोई ठोस समझौता या एग्जीक्यूटिव ऑर्डर अब तक जारी नहीं हुआ है।
- भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर कोऑपरेशन अब भी कई कानूनी बाधाओं से घिरा हुआ है।
4. न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ:
- भारत में न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ (Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010) लागू है।
- यह कानून कहता है कि अगर कोई न्यूक्लियर हादसा होता है, तो उसका मुआवजा संबंधित कंपनी को देना होगा।
- अमेरिका की कंपनियों को यह कानून मंजूर नहीं है, इसलिए अब तक कोई बड़ा न्यूक्लियर प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया है।
5. रूस और फ्रांस का रुख:
- रूस और फ्रांस ने भारत के न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ को स्वीकार कर लिया है और दोनों देशों ने भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित किए हैं।
- रूस ने कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट और अन्य प्रोजेक्ट्स में सहयोग किया है।
6. अमेरिका की रणनीति:
- अमेरिका चाहता है कि वह भारत के साथ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी साझा करे लेकिन बिना ज्यादा कानूनी जवाबदेही के।
- अमेरिका का मुख्य उद्देश्य है कि भारत को चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदार के रूप में तैयार किया जाए।
7. भारत के लिए संभावित लाभ:
- न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी मिलने से स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा।
- भारत का लक्ष्य 2030 तक 20,000 मेगावाट न्यूक्लियर पावर जनरेट करना है।
8. निष्कर्ष: हालांकि अमेरिका ने भारत के साथ न्यूक्लियर प्रतिबंध हटाने की बात कही है, लेकिन अभी तक यह केवल एक राजनीतिक बयान ही है। ठोस कदम और एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी होने बाकी हैं।
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Q1: क्या भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर संधि क्या है?
A: भारत और अमेरिका के बीच 2007 में एक सिविल न्यूक्लियर संधि (123 एग्रीमेंट) हुई थी, जिसका उद्देश्य न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना था। हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों के कारण इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पाया है।
Q2: 1998 में भारत पर अमेरिका ने प्रतिबंध क्यों लगाए थे?
A: 1998 में भारत ने पोखरण में न्यूक्लियर टेस्ट किया था, जिसके बाद अमेरिका ने भारत पर कई न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी से जुड़े प्रतिबंध लगा दिए थे।
Q3: क्या अमेरिका ने भारत पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए हैं?
A: नहीं, अमेरिका ने अभी तक पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं हटाए हैं। हाल ही में अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर ने भारत दौरे पर इसे हटाने का आश्वासन दिया है।
Q4: न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ क्या है?
A: न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ एक कानून है, जो किसी न्यूक्लियर हादसे की स्थिति में मुआवजा देने की जिम्मेदारी तय करता है। भारत का यह कानून अमेरिका और अन्य देशों के लिए एक मुख्य बाधा रहा है।
Q5: क्या रूस और फ्रांस ने भारत के न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ को स्वीकार किया है?
A: हां, रूस और फ्रांस ने भारत के न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ को स्वीकार कर लिया है और भारत में न्यूक्लियर प्लांट्स स्थापित करने में सहयोग कर रहे हैं।
Q6: क्या भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स की संख्या बढ़ने वाली है?
A: हां, भारत ने 2030 तक न्यूक्लियर एनर्जी से 20,000 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए कई नए प्लांट्स बनने की योजना है।
Q7: क्या अमेरिका और भारत के बीच भविष्य में न्यूक्लियर सहयोग बढ़ सकता है?
A: यदि अमेरिका अपने प्रतिबंध हटाता है और न्यूक्लियर लायबिलिटी लॉ को स्वीकार करता है, तो दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर सहयोग बढ़ सकता है।
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