लेखक :- Roshan Kumar Soni
कैटेगरी :- ताजा खबर | Heavy Rain Alert
Publish Date :- Sunday, 11 May 2025
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चला आ रहा कश्मीर मुद्दा हमेशा से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय रहा है, लेकिन भारत की स्पष्ट नीति रही है — कोई तीसरा पक्ष नहीं, सिर्फ द्विपक्षीय वार्ता। इसी सिद्धांत को मजबूती से स्थापित करने वाला समझौता था शिमला समझौता (1972)
हाल ही में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत-पाक के बीच “सीजफायर” और “तटस्थ मंच” जैसी बातें कहीं, तो कांग्रेस समेत कई विशेषज्ञों ने यह सवाल उठाया — क्या भारत अब शिमला समझौते से पीछे हट रहा है?
Contents
शिमला समझौता: भारत की कूटनीतिक नींव

शिमला समझौता, जिसे 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हस्ताक्षरित किया गया था, ने यह स्पष्ट किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवाद द्विपक्षीय रूप से ही सुलझाए जाएंगे। इसका मुख्य उद्देश्य था:
युद्ध के बाद स्थायी शांति स्थापित करना,
कश्मीर सहित सभी मुद्दों को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करना,
किसी तीसरे देश को मध्यस्थ के रूप में शामिल नहीं करना।
🇺🇸 अमेरिका की एंट्री: ‘तटस्थ मंच’ पर सवाल
हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा दिया गया यह बयान कि अमेरिका एक “तटस्थ मंच” के रूप में भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद में भूमिका निभा सकता है, भारत की पुरानी नीति के विपरीत प्रतीत होता है। इससे यह आशंका उठी है कि क्या सरकार ने चुपचाप किसी रूप में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया है?
कांग्रेस का हमला: सरकार स्पष्टता दे
कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने इस पूरे घटनाक्रम पर गहरी चिंता जताते हुए कहा:
“क्या हमने शिमला समझौते को छोड़ दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाजे खोल दिए हैं? यह स्पष्ट किया जाना चाहिए।”
उन्होंने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की, ताकि इस मुद्दे पर सभी दल खुलकर चर्चा कर सकें। उन्होंने यह भी पूछा:
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सीजफायर की घोषणा क्यों अमेरिका से पहले आई?
क्या भारत ने पाकिस्तान से कोई समझौता किया है?
क्या सरकार ने कूटनीतिक चैनल फिर से खोल दिए हैं?
क्या शिमला समझौता अब अप्रासंगिक हो गया है?
यह एक गंभीर सवाल है क्योंकि:
अगर भारत ने अमेरिका को किसी भी रूप में मध्यस्थता की अनुमति दी, तो यह शिमला समझौते का उल्लंघन है।
इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दा उठाने का नया आधार मिल सकता है।
भारत की वैश्विक स्थिति, विशेष रूप से G20, BRICS और UNSC जैसे मंचों पर, प्रभावित हो सकती है।
🇮🇳 कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की याद दिलाई
जयराम रमेश ने कहा कि “आज देश को इंदिरा गांधी जी के उस निर्णायक नेतृत्व की याद आ रही है, जैसा उन्होंने 1971 के युद्ध में दिखाया था।” कांग्रेस का इशारा साफ था — आज की सरकार की विदेश नीति स्पष्ट नहीं है और यह भारत की दीर्घकालिक कूटनीतिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है।
बार-बार पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1: शिमला समझौता क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: यह 1972 का एक द्विपक्षीय समझौता है, जिसमें तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी विवाद केवल आपसी बातचीत से हल होगा, तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं होगी।
Q2: क्या भारत ने अब तीसरे पक्ष को मान्यता दे दी है?
उत्तर: सरकार की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन हाल के घटनाक्रम और अमेरिकी अधिकारियों के बयान इस ओर संकेत कर रहे हैं।
Q3: कांग्रेस की मुख्य मांग क्या है?
उत्तर: कांग्रेस प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र चाहती है ताकि इस संवेदनशील विषय पर पारदर्शिता लाई जा सके।
Q4: क्या यह भारत की विदेश नीति में बदलाव का संकेत है?
उत्तर: अगर तीसरे पक्ष को स्वीकारा गया है, तो यह एक बड़ा कूटनीतिक बदलाव होगा और भारत की दशकों पुरानी विदेश नीति में महत्वपूर्ण मोड़ माना जाएगा।
निष्कर्ष:
आज जब भारत वैश्विक स्तर पर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है, ऐसे में उसकी कूटनीतिक नीति की स्पष्टता और मजबूती अत्यंत आवश्यक है। कांग्रेस का सवाल यही है — क्या भारत अब अपनी रणनीतिक नींव से हट रहा है?
सरकार को इस पर न केवल संसद में बल्कि जनता के सामने भी पारदर्शी ढंग से अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
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