Published by: Roshan Soni
Updated on: Thursday, 19 Dec 2024
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के कोयला रॉयल्टी बकाया को लेकर एक जोरदार अभियान शुरू किया है। उन्होंने भाजपा नेताओं की टिप्पणियों पर करारा जवाब देते हुए इसे झारखंड के लोगों का हक बताया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर ‘#कब_मिलेगा_1.36_लाख_करोड़’ अभियान की शुरुआत की, जिससे यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बन गया।
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हेमंत सोरेन :- 1.36 लाख करोड़: झारखंड का हक
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह स्पष्ट किया कि यह राशि झारखंड के हर नागरिक का हक है। यह राज्य के मेहनतकश लोगों के अधिकार का पैसा है, जिसे केंद्र सरकार ने अब तक रोका हुआ है। उन्होंने कहा:
“हमारा यह पैसा हमारी मेहनत और संघर्ष का प्रतीक है। इसे हम किसी भी हाल में लेकर रहेंगे।”
हेमंत सोरेन :- भाजपा पर निशाना
मुख्यमंत्री ने भाजपा नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि जब झारखंड के हक की रक्षा के लिए समर्थन देना चाहिए था, तब वे इसके विरोध में खड़े हो गए। उन्होंने इसे झारखंडियों के साथ अन्याय करार दिया।
हेमंत सोरेन :- कानूनी लड़ाई की तैयारी
झारखंड सरकार ने यह घोषणा की है कि वह इस राशि को पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संबंधित विभागीय मंत्रियों को पत्र लिख चुकी है।
सरकार ने वरीय अधिवक्ताओं का एक पैनल बनाकर अदालत में मजबूत दलीलें पेश करने की योजना बनाई है।
कोयला रॉयल्टी विवाद का इतिहास
1.36 लाख करोड़ रुपये की बकाया राशि झारखंड के लिए एक प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक मुद्दा है। विधानसभा चुनावों के दौरान यह मामला भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच टकराव का कारण बना।
हेमंत सोरेन :- कोयला कंपनियों पर दबाव
झारखंड सरकार ने राज्य में खनन कर रही कोयला कंपनियों को इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। यदि केंद्र सरकार बकाया नहीं चुकाती, तो राज्य से कोयले की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
प्रमुख सवाल:
1. झारखंड के कोयला रॉयल्टी बकाया का मामला क्या है?
झारखंड का दावा है कि केंद्र सरकार और कोयला कंपनियों पर 1.36 लाख करोड़ रुपये की रॉयल्टी बकाया है, जिसे अब तक नहीं चुकाया गया है।
2. इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच क्या विवाद है?
केंद्र सरकार का कहना है कि इस मद में कोई बकाया नहीं है, जबकि राज्य सरकार ने इसे चुनौती देते हुए कानूनी कार्रवाई की योजना बनाई है।
3. क्या होगा अगर कोयला रॉयल्टी का बकाया नहीं मिला?
अगर राज्य को बकाया नहीं मिलता है, तो कोयला आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। राज्य सरकार ने कोयला कंपनियों को स्पष्ट किया है कि बकाया भुगतान के बिना कोयले का खनन और आपूर्ति बाधित हो सकती है।
निष्कर्ष
हेमंत सोरेन का यह अभियान झारखंड की जनता के अधिकारों और राज्य की आर्थिक स्वायत्तता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कानूनी लड़ाई और राजनीतिक संघर्ष आने वाले समय में क्या रंग लाते हैं।
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