By Roshan Soni
Edited By : Roshan Soni
Updated : Friday , 30 May 2025
Contents
- 1 परिचय: जब शिक्षक राजनीति के कटघरे में खड़े हुए
- 1.1 नेहा सिंह राठौर का आरोप: ‘धंधा भी ज़रूरी है!’
- 1.2 विवाद की जड़: वायरल हुआ ‘Say No To War’ वीडियो
- 1.3 मोदी और इंदिरा गांधी की तुलना: समझ या मजबूरी?
- 1.4 शिक्षा बनाम व्यवसाय: क्या ‘महान शिक्षक’ सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं?
- 1.5 Related
परिचय: जब शिक्षक राजनीति के कटघरे में खड़े हुए
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर चलाया। लेकिन यह सैन्य जवाब केवल सीमा तक सीमित नहीं रहा — इसके बाद सोशल मीडिया पर राजनीतिक और वैचारिक मोर्चा भी खुल गया।

लोकप्रिय लोकगायिका और सोशल एक्टिविस्ट नेहा सिंह राठौर ने एक के बाद एक पोस्ट के जरिए न केवल सरकार की नीतियों बल्कि एक “महान शिक्षक” को भी निशाने पर लिया। इशारा साफ था — विकास दिव्यकीर्ति की ओर, जिनकी क्लास वीडियो वायरल हो रही हैं।
नेहा सिंह राठौर का आरोप: ‘धंधा भी ज़रूरी है!’
नेहा सिंह राठौर ने एक X पोस्ट में लिखा:
“नेहरू विहार के बेसमेंट में अवैध UPSC क्लास चलाने वाले शिक्षक सरकार से क्षमाप्रार्थी मुद्रा में इंदिरा गांधी और मोदी को एक जैसे बता रहे हैं… आखिर व्यापारी आदमी को सरकार से बनाकर चलना पड़ता है भाई! धंधा भी जरूरी है!”
यह टिप्पणी उन शिक्षकों पर सीधा हमला थी, जो शिक्षा को व्यवसाय बना चुके हैं, और सत्ता के सामने झुकने से भी गुरेज़ नहीं करते। उन्होंने बिना नाम लिए, दृष्टि IAS के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति को घेरा।
विवाद की जड़: वायरल हुआ ‘Say No To War’ वीडियो
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करते हैं:
“लोग कह रहे थे कब करोगे? जैसे ही जवाब दिया, तो De-escalate की मांग आने लगी। ऐसा लगता है जैसे माहौल बना हुआ था…”
इस बयान को कुछ लोग देशभक्ति और कूटनीति के संतुलन की समझ मानते हैं, तो कुछ इसे छल और समझौते की राजनीति कहते हैं। नेहा के अनुसार, यह शिक्षक सरकार के अनुकूल वातावरण बनाने का काम कर रहे हैं।
मोदी और इंदिरा गांधी की तुलना: समझ या मजबूरी?
इस विवाद का दूसरा पहलू विकास दिव्यकीर्ति के उस वीडियो से जुड़ा है जिसमें वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी की तुलना करते हैं।
उनके अनुसार, दोनों नेताओं में सत्ता और निर्णय लेने का एक जैसा “तेवर” रहा है। इस तुलना को सत्ता की प्रशंसा मानकर सोशल मीडिया पर घमासान मच गया।
नेहा सिंह राठौर ने तीखा तंज कसा:
“मोदी जी का विकास अब सामने आ चुका है, जो उन्हें इंदिरा गांधी जैसा नेता बता रहा है। कल को उन्हें नेहरू जैसा ग्लोबल नेता और गांधी जैसा महात्मा भी बना देगा।”
शिक्षा बनाम व्यवसाय: क्या ‘महान शिक्षक’ सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं?
नेहा की बात इस ओर भी इशारा करती है कि कई शिक्षक अब सिस्टम से तालमेल बनाकर शिक्षा को धंधा बना चुके हैं।
दृष्टि IAS, Unacademy, Byju’s जैसी कोचिंग कंपनियों का तेजी से बढ़ता बाजार यह दिखाता है कि आज शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, एक व्यापारिक उत्पाद बन चुकी है।
क्या ऐसे में एक शिक्षक नैतिक स्वतंत्रता के साथ सत्ताधारी दलों की आलोचना कर सकता है? या उसे व्यापार के चलते समझौता करना पड़ता है?
सोशल मीडिया की भूमिका: ट्रोल्स बनाम फॉलोअर्स
नेहा और दिव्यकीर्ति विवाद का सबसे दिलचस्प पहलू है – सोशल मीडिया का हस्तक्षेप।
आज किसी भी विचार को तुरंत “देशद्रोह” या “भक्तिवाद” के खांचे में रख दिया जाता है। नेहा को कुछ लोग “वामपंथी एजेंडा चलाने वाली” कह रहे हैं, तो दिव्यकीर्ति को “सरकार का भक्त”।
असल में यह विचार की स्वतंत्रता बनाम भावना की राजनीति का टकराव है, जहां सोशल मीडिया न्यायालय बन चुका है।
ऑपरेशन सिंदूर का असली मकसद छूट गया?
इस पूरे विवाद के दौरान यह बात कहीं पीछे छूट गई कि ऑपरेशन सिंदूर एक सैन्य कार्रवाई थी पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर।
लेकिन मीडिया और सोशल स्पेस में चर्चा केवल नेहा बनाम दिव्यकीर्ति तक सीमित रह गई।
इससे यह सवाल उठता है:
क्या हम अब राष्ट्र सुरक्षा से ज्यादा सोशल मीडिया ट्रेंड्स और बयानबाजियों को महत्व देने लगे हैं?
महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs) — अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
❓ नेहा सिंह राठौर ने किसे ‘महान शिक्षक’ कहा?
👉 उन्होंने बिना नाम लिए दृष्टि IAS के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति की ओर इशारा किया जो इन दिनों सोशल मीडिया पर अपने वीडियो के कारण चर्चा में हैं।
❓ ऑपरेशन सिंदूर क्या है?
👉 यह भारतीय सेना का एक सैन्य अभियान है जो पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमले के रूप में शुरू किया गया था।
❓ विकास दिव्यकीर्ति ने मोदी और इंदिरा गांधी की तुलना क्यों की?
👉 उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं में निर्णय लेने की समान शैली और “साहसिक तेवर” हैं। कुछ लोगों ने इसे सत्ता पक्ष की प्रशंसा माना।
❓ क्या UPSC कोचिंग अब धंधा बन चुकी है?
👉 कई आलोचकों का मानना है कि UPSC कोचिंग आज व्यावसायिक मॉडल बन चुकी है, जहां शिक्षा से ज्यादा ब्रांडिंग को महत्व दिया जाता है।
❓ क्या यह विवाद विचारों की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है?
👉 हां, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और पक्षधरता के कारण विचारों की स्वतंत्रता पर आंच आती है और जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकता है।
निष्कर्ष: शिक्षा, राजनीति और सोशल मीडिया की नई जंग
नेहा सिंह राठौर और विकास दिव्यकीर्ति के इस अप्रत्यक्ष टकराव ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है –
क्या आज के शिक्षक अपने विचार स्वतंत्र रूप से रख सकते हैं या उन्हें भी सत्ता के सामने नतमस्तक होना पड़ता है?
वहीं दूसरी ओर यह भी देखने को मिला कि एक सैन्य ऑपरेशन, एक राष्ट्रीय मुद्दा, कैसे सोशल मीडिया की व्यक्तिगत लड़ाई में तब्दील हो सकता है।
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