डॉ अभिषेक स्वर्णकार: भारत ने खोया एक और ब्रिलियंट माइंड

Published by :- Sourav Kumar
Updated on: Sunday ,16 March 2025

भारत में विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने वाले कई प्रतिभाशाली वैज्ञानिक हुए हैं, लेकिन कुछ का सफर असमय ही समाप्त हो जाता है। ऐसी ही एक दुखद कहानी है अभिषेक की, जो सिल्वर नैनो पार्टिकल्स के क्षेत्र में अग्रणी वैज्ञानिक थे। 39 वर्ष की आयु में उन्होंने कई महत्वपूर्ण शोधपत्र प्रकाशित किए और अमेरिका, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड समेत विभिन्न देशों में सराहनीय कार्य किया।

Dr Abhishek Swarnkar had recently joined IISER as a project scientist.

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अभिषेक की उपलब्धियां

अभिषेक ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) में कार्यरत रहते हुए रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में क्रांतिकारी शोध किए। खासकर सोलर एनर्जी पर उनका विशेष ध्यान था। उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों के बावजूद अपनी वैज्ञानिक यात्रा को जारी रखा। 2008 में किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद भी वे डायलिसिस पर रहते हुए भी विज्ञान में नई ऊंचाइयों को छूते रहे।

दुर्भाग्यपूर्ण घटना

मोहाली, पंजाब के सेक्टर 67 में अपने किराए के मकान में रहने के दौरान एक छोटी सी पार्किंग विवाद ने उनकी जान ले ली। एक पड़ोसी के साथ हुए झगड़े में उन्हें मारा गया, जिससे वे गिर पड़े और अपनी जान गंवा बैठे।

भारत में वैज्ञानिकों के लिए सुरक्षित वातावरण की जरूरत

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि भारत में प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल देने की कितनी आवश्यकता है। ऐसे ब्रिलियंट माइंड्स को सरकार द्वारा सुरक्षित आवास और विशेष सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने शोध कार्य में योगदान दे सकें।

लॉ एंड ऑर्डर में सुधार की जरूरत

भारत में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को मजबूत करने की भी आवश्यकता है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रति एक लाख लोगों पर कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, लेकिन भारत में यह संख्या मात्र 154 है। वहीं, अमेरिका और यूरोप में यह संख्या कहीं अधिक है, जिससे वहां कानून व्यवस्था अधिक प्रभावी है।

समाज में बदलाव की आवश्यकता

इस घटना ने यह भी दिखाया कि भारतीय समाज में सहनशीलता और सिविक सेंस की भारी कमी है। गुस्से और हिंसा को कम करने के लिए हमें अपनी संस्कृति और शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने होंगे। सोशल मीडिया, फिल्मों और समाज में इस विषय को उठाना चाहिए कि सहिष्णुता और शांति बनाए रखना कितना आवश्यक है।

निष्कर्ष

अभिषेक जैसे वैज्ञानिकों का भारत में रहकर कार्य करना देश के लिए गौरव की बात थी। लेकिन उनकी असमय मृत्यु ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारा समाज प्रतिभाओं को उचित सम्मान और सुरक्षा प्रदान कर पा रहा है? अब समय आ गया है कि हम विज्ञान, लॉ एंड ऑर्डर और सामाजिक संरचना में जरूरी बदलाव करें ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों।

FAQs: अभिषेक का संघर्ष और विज्ञान में योगदान

1. अभिषेक कौन था और वह कहाँ से था?

अभिषेक एक होनहार वैज्ञानिक था, जो समाज के पिछड़े वर्ग से आया था। उसने विज्ञान और शोध के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए थे।

2. अभिषेक को किन सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

अभिषेक को जातिगत भेदभाव, आर्थिक तंगी और सामाजिक असमानता जैसी समस्याओं से जूझना पड़ा, जिससे उसकी शैक्षिक और व्यावसायिक यात्रा कठिन हो गई।

3. अभिषेक ने विज्ञान में कौन-से प्रमुख योगदान दिए?

उसने विभिन्न वैज्ञानिक शोधों में हिस्सा लिया और कुछ महत्वपूर्ण खोजों में योगदान दिया, जो समाज के लिए लाभदायक हो सकते थे।

4. उसकी मृत्यु का क्या कारण था?

अभिषेक की मृत्यु एक दुखद घटना थी, जिसे आत्महत्या बताया गया। इसके पीछे सामाजिक और मानसिक दबाव प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।

5. क्या सरकार या प्रशासन ने इस मामले में कोई कार्रवाई की?

इस मामले को लेकर जागरूकता फैलाई गई, लेकिन न्याय और नीतिगत सुधारों की अब भी जरूरत महसूस की जा रही है।

6. इस घटना से समाज को क्या सीखने की जरूरत है?

हमें जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय को खत्म करने की दिशा में कार्य करना चाहिए ताकि किसी भी होनहार युवा का भविष्य ऐसे कारणों से प्रभावित न हो।

7. क्या शिक्षा और सरकारी नीतियों में सुधार किया जा सकता है?

हाँ, सरकार को अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए प्रभावी नीतियाँ बनानी चाहिए, जिससे उन्हें समान अवसर मिलें और वे बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़ सकें।

8. इस विषय पर लोग कैसे जागरूकता फैला सकते हैं?

सोशल मीडिया, लेख, ब्लॉग, सेमिनार और संवाद के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया जा सकता है ताकि समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।

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