छठ पूजा 2024: सूर्यपुत्र कर्ण की छठ व्रत की अद्भुत कथा और चार दिवसीय पूजा विधि का विशेष महत्व”
Published by: Roshan Soni
Updated on: Wednesday, 06 Nov 2024
Contents
Introduction
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और कठिन व्रत है, जिसमें सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व होता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में विशेष रूप से पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा का यह व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसका संबंध महाभारत काल और सूर्यपुत्र कर्ण से भी है, जिन्होंने स्वयं इस महापर्व को किया था। इस ब्लॉग में हम जानेंगे छठ पर्व की महिमा, इसकी चार दिवसीय पूजा विधि और सूर्यपुत्र कर्ण की छठ व्रत से जुड़ी रोचक कथा।
छठ पूजा का इतिहास और महत्व
छठ पूजा का प्रारंभिक उल्लेख महाभारत काल में मिलता है। सूर्यपुत्र कर्ण, जो अंग प्रदेश (वर्तमान भागलपुर, बिहार) के राजा थे, प्रतिदिन सूर्य देव की आराधना करते थे। कर्ण ने इस व्रत का पालन कर सूर्य देवता से विशेष आशीर्वाद प्राप्त किया था। छठ पूजा में सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना कर सभी पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह पर्व प्रकृति, जल और प्रकाश की पूजा को दर्शाता है और चार दिनों तक चलने वाली इस पूजा में भक्तगण कठिन तपस्या करते हैं।
छठ पूजा के चार दिनों की विशेष पूजा विधि
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती गंगा नदी या अन्य पवित्र जलाशयों में स्नान कर शुद्धता का पालन करते हैं। इसके बाद घर की सफाई कर अरवा भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें कद्दू-भात और चने की दाल होती है। यह भोजन पूरी तरह से सात्विक होता है और इसे व्रती के साथ उनके परिवार के लोग भी ग्रहण करते हैं।
दूसरा दिन: खरना
दूसरे दिन को “खरना” कहते हैं, इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को बनाते समय शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना के प्रसाद को व्रती अपने परिवार और पड़ोसियों में बांटते हैं, जिससे सभी में प्रेम और एकता का भाव उत्पन्न होता है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और शाम को डूबते सूर्य को नदी या तालाब के किनारे जाकर अर्घ्य देते हैं। इसे संध्या अर्घ्य कहते हैं, जिसमें डूबते सूर्य को सम्मान दिया जाता है। इस अर्घ्य का महत्व है कि यह हमारे अतीत और संघर्षों का प्रतीक है। इसके बाद व्रती दीप जलाकर छठी मैया की पूजा करते हैं और आशीर्वाद की कामना करते हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन को उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, जिसे “उषा अर्घ्य” कहते हैं। व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर भविष्य की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस पूजा के बाद व्रत का पारण होता है और सभी के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है। यह दिन हमारे भविष्य और जीवन में आने वाले नए अवसरों का प्रतीक है।
सूर्यपुत्र कर्ण और छठ पूजा की कथा
सूर्यपुत्र कर्ण को भगवान सूर्य का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी भक्ति के कारण कर्ण प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की आराधना के इस नियम का पालन करते हुए उन्होंने छठ व्रत का पालन किया, जिससे उन्हें “दानवीर” कर्ण के रूप में ख्याति मिली। महाभारत में वर्णित है कि द्रौपदी ने भी छठ व्रत अपने परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि के लिए किया था। तब से यह पर्व हर वर्ग और समुदाय के बीच श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?
छठ पर्व में सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना कर उनसे सुख, शांति, समृद्धि और आशीर्वाद की कामना की जाती है। यह पर्व शारीरिक और मानसिक शुद्धता का प्रतीक है और इसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य की पूजा विधि शामिल है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के रोग, शोक, और कष्ट समाप्त होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देना हमारे अतीत का सम्मान और हमारे संघर्षों की स्वीकार्यता का प्रतीक है, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना भविष्य की सुख-समृद्धि की कामना करता है। यह परंपरा हमें अतीत और वर्तमान के प्रति संतुलन बनाने का प्रतीकात्मक संदेश देती है।
Conclusion
छठ पूजा 2024 में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाता है, बल्कि यह पर्व प्रकृति से जुड़ने, आत्म-नियंत्रण और मानसिक शुद्धता का प्रतीक है। सूर्यपुत्र कर्ण और महाभारत की द्रौपदी से जुड़े इस पर्व की महिमा इसे और भी पवित्र बनाती है। इस पर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर हम अपने अतीत और भविष्य का सम्मान करते हैं और जीवन में संतुलन का भाव उत्पन्न करते हैं।
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