Published by: Roshan Soni
Updated on: Wednesday, 4 Dec 2024
बोकारो जिले में स्थित सीसीएल (Central Coalfields Limited) के तीनों प्रक्षेत्रों में छह जनवरी 2025 से अनिश्चितकालीन चक्का जाम आंदोलन की घोषणा की गई है। यह निर्णय विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति द्वारा करगली में आयोजित बैठक में लिया गया। बैठक में विस्थापितों की लंबित समस्याओं को लेकर गंभीर चर्चा की गई और सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि सीसीएल प्रक्षेत्रों में आंदोलन का रास्ता अपनाया जाएगा।
आंदोलन का कारण और विस्थापितों की समस्याएं
सीसीएल के कोयलांचल क्षेत्र में लंबे समय से विस्थापित परिवारों की समस्याएं बढ़ रही हैं। विस्थापितों का मुख्य आरोप है कि उन्हें नौकरी, मुआवजा और पुनर्वास के मामले में लगातार धोखा दिया जा रहा है। विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति का कहना है कि सीसीएल प्रबंधन ने उनके साथ हुए समझौतों का पालन नहीं किया है, जिसके चलते विस्थापितों में गुस्सा और आक्रोश पनप रहा है।
समिति के अध्यक्ष लखनलाल महतो ने बैठक में बताया कि सीबी एक्ट में किए गए संशोधन के द्वारा विस्थापितों के अधिकारों को छीनने की योजना बनाई जा रही है, जिसे लेकर समिति ने कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री को आपत्ति पत्र भेजने का निर्णय लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि सीसीएल प्रबंधन द्वारा वादाखिलाफी की वजह से विस्थापितों में गुस्से की भावना व्याप्त हो गई है।
सीसीएल प्रबंधन की नीतियां और विस्थापितों के अधिकार
विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के महासचिव काशीनाथ केवट ने कहा कि पिछले 50 वर्षों से विस्थापितों को नौकरी, मुआवजा, पुनर्वास और अन्य अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि, सीसीएल प्रबंधन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि समिति द्वारा सीसीएल प्रबंधन से की गई कई वार्ताओं में किए गए समझौते के बिंदुओं को लागू नहीं किया गया, जिससे विस्थापितों में आक्रोश बढ़ रहा है।
समिति के सदस्य और अन्य नेताओं ने कहा कि अगर सीसीएल प्रबंधन विस्थापितों के अधिकारों के प्रति थोड़ी भी गंभीरता दिखाता, तो विस्थापितों का बकाया नौकरी तुरंत दिया जाता और मुआवजे की राशि भी बाजार दर से चार गुणा बढ़ाई जाती। इसके अलावा, समिति ने यह भी आरोप लगाया कि सीसीएल प्रबंधन विस्थापितों के रोजगार के अधिकारों को नजरअंदाज कर रहा है। उन्होंने बताया कि सीसीएल ने विस्थापितों को आउटसोर्सिंग में रोजगार देने से भी मना कर दिया है।
चक्का जाम आंदोलन की रूपरेखा
समिति द्वारा किए गए इस निर्णय से यह साफ हो जाता है कि विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति अब अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरेगी। बैठक में तय किया गया कि छह जनवरी 2025 से बेरमो कोयलांचल क्षेत्र में स्थित सीसीएल के तीनों प्रक्षेत्रों का अनिश्चितकालीन चक्का जाम किया जाएगा। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य सीसीएल प्रबंधन से विस्थापितों के अधिकारों को लेकर किए गए वादों को पूरा करवाना है।
समिति ने यह भी घोषणा की कि 26 दिसंबर को करगली महिला मंडल में विस्थापितों का एक विशाल सेमिनार आयोजित किया जाएगा, जिसमें आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की जाएगी। इस सेमिनार में विस्थापितों की समस्याओं के समाधान के लिए कदम उठाए जाने की योजना बनाई जाएगी।
पेलोडर के रोजगार पर प्रभाव
विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के कार्यकारी अध्यक्ष विनोद महतो ने बैठक में पेलोडर के रोजगार से संबंधित एक गंभीर मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि एक पेलोडर के कारण हजारों लोगों का रोजगार छिन चुका है। सीसीएल प्रबंधन और ट्रांसपोर्टरों के बीच हुए समझौते के अनुसार, पेलोडर की जगह मैनुअल लोडिंग का कार्य शुरू किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सीसीएल अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज कोल इंडिया महारत्न कंपनी बनी है, और इसकी नींव यहां के भू विस्थापितों की पुश्तैनी ज़मीन है।
क्या है सीसीएल का महत्व?
कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के तहत आने वाली सीसीएल कोल खदानें बोकारो और आसपास के क्षेत्रों के लिए आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन खदानों से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता है। लेकिन यह भी सच है कि इन खदानों के संचालन के कारण स्थानीय गांवों और बस्तियों के लोग विस्थापित हो जाते हैं। ऐसे में इन विस्थापितों के लिए उचित मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार की व्यवस्था सुनिश्चित करना जरूरी है।
निष्कर्ष
विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति द्वारा उठाए गए इस आंदोलन के मुद्दे को नजरअंदाज करना सीसीएल और कोल इंडिया के लिए मुश्किल हो सकता है। विस्थापितों का यह आंदोलन यह साबित करता है कि उनके अधिकारों की रक्षा के लिए वे अब सड़क पर उतरने को तैयार हैं। यदि सीसीएल प्रबंधन विस्थापितों की समस्याओं का समाधान नहीं करता है, तो यह आंदोलन और भी व्यापक रूप ले सकता है। इस संघर्ष की परिणामस्वरूप सीसीएल प्रबंधन को यह समझने की आवश्यकता है कि अगर वे विस्थापितों के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं, तो उनका आंदोलन उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
यह आंदोलन विस्थापितों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह इस बात का प्रतीक है कि अगर कोई समुदाय अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता है, तो उसे अंततः न्याय मिल सकता है।
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