कांग्रेस और उसके नेताओं को एक्स से मिला नोटिस: अमित शाह के राज्यसभा भाषण के वीडियो क्लिप को लेकर विवाद

Published by: Roshan Soni
Updated on: Thursday, 19 Dec 2024

कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) से एक नोटिस प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा भाषण के कुछ वीडियो क्लिप अपने हैंडल पर साझा करने के लिए कहा गया था। यह घटना 18 दिसंबर, 2024 को सामने आई, और इसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि क्या है इस नोटिस का मामला, इसके पीछे की राजनीति और इसका क्या प्रभाव हो सकता है।

एक्स से कांग्रेस और नेताओं को मिला नोटिस

कांग्रेस और उसके नेताओं को एक्स से मिला नोटिस: अमित शाह के राज्यसभा भाषण के वीडियो क्लिप को लेकर विवाद
कांग्रेस और उसके नेताओं को एक्स से मिला नोटिस: अमित शाह के राज्यसभा भाषण के वीडियो क्लिप को          लेकर विवाद

 

विपक्षी सूत्रों के अनुसार, एक्स द्वारा भेजे गए नोटिस में यह बताया गया कि कांग्रेस नेताओं द्वारा साझा की गई सामग्री भारत के कानून का उल्लंघन करती है। यह नोटिस गृह मंत्रालय (एमएचए) के साइबर अपराध समन्वय केंद्र से प्राप्त हुआ था, जिसमें कहा गया था कि यह सामग्री हटाई जाए। हालांकि, एक्स या गृह मंत्रालय की ओर से इस मामले की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।

नोटिस में एक्स ने यह भी कहा कि वह अपने मंच पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व देता है, लेकिन साथ ही उसने कानून का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

वीडियो क्लिप का विवाद: अमित शाह की टिप्पणी

कांग्रेस के कुछ सांसदों और नेताओं ने 17 दिसंबर, 2024 को राज्यसभा में संविधान के 75 वर्षों की यात्रा पर बहस के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का वीडियो क्लिप साझा किया। इस क्लिप में शाह ने बी.आर. अंबेडकर के बारे में बात की और विपक्ष पर निशाना साधा। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं पर आरोप लगाया कि वे अंबेडकर के बारे में उनके बयान को विकृत कर रहे हैं और गलत तरीके से पेश कर रहे हैं।

अमित शाह ने 18 दिसंबर को भाजपा मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने संविधान पर चर्चा के बाद एक दुर्भावनापूर्ण अभियान शुरू किया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी ने जानबूझकर एक मिथक फैलाया है कि वह अंबेडकर विरोधी और आरक्षण विरोधी है, जिसका उद्देश्य विपक्षी दल की छवि को नुकसान पहुंचाना था।

क्या है इस नोटिस का राजनीतिक संदर्भ?

यह विवाद राजनीति के एक और स्तर पर फैलता है, जहां विभिन्न पार्टियां अपनी-अपनी दृष्टि को जनता तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं। कांग्रेस द्वारा अमित शाह के भाषण का वीडियो क्लिप साझा करना, जिसमें अंबेडकर के बारे में उनकी टिप्पणियों को लेकर विरोध जताया गया था, ने निश्चित रूप से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव को और बढ़ा दिया है।

यह नोटिस भी इस तथ्य को दर्शाता है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर राजनीतिक विचारों और सामग्री को लेकर अब सरकार की नजरें और सख्त हो गई हैं। एक्स के माध्यम से भेजा गया यह नोटिस कई सवाल खड़े करता है: क्या यह सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश है? क्या इसे सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष के खिलाफ एक रणनीतिक कदम माना जाए?

कांग्रेस और विपक्षी प्रतिक्रिया

कांग्रेस और उसके नेताओं ने इस नोटिस के खिलाफ प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने कहा कि यह कदम लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है और यह दर्शाता है कि सरकार किसी भी प्रकार की आलोचना को सहन नहीं कर सकती।

कांग्रेस के नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार को इस बात की चिंता नहीं है कि वे सही हैं या गलत, बल्कि उनकी एकमात्र चिंता विपक्ष को चुप कराना और आलोचना को रोकना है।

सोशल मीडिया पर बढ़ती सख्ती

इस घटना के बाद यह साफ है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर सरकार की निगरानी बढ़ती जा रही है। एक्स पर भेजे गए नोटिस ने यह संकेत दिया है कि अब सोशल मीडिया पर साझा की जाने वाली सामग्री पर अधिक नियंत्रण और निगरानी रखी जा रही है। यह मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र और सोशल मीडिया के उपयोग के लिए एक बड़ा प्रश्न उठाता है।

निष्कर्ष

कांग्रेस और उसके नेताओं को एक्स से नोटिस मिलने का मामला भारतीय राजनीति में एक और नया मोड़ लेकर आया है। यह घटना बताती है कि सोशल मीडिया पर राजनीति के इर्द-गिर्द जो बहस चल रही है, वह अब और तेज हो गई है। चाहे यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला हो या फिर सरकार की नियंत्रण की नीति, यह विवाद आगामी चुनावों और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

यह घटना भारतीय राजनीति, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पहलुओं को लेकर एक नए बहस का जन्म देती है, जो भविष्य में और अधिक चर्चा का कारण बन सकती है।

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