Published by: Roshan Soni
Updated on: Friday ,29 Nov 2024
पुत्री ने निभाया पुत्र का फर्ज
हजारीबाग, केरेडारी – आज के दौर में जब सामाजिक संबंधों में बदलाव के साथ पारिवारिक मूल्यों में गिरावट देखने को मिल रही है, बड़कागांव निवासी रुक्मिणी प्रजापति ने अपनी मां के प्रति कर्तव्य निभाने की अनोखी मिसाल पेश की। रुक्मिणी ने पुत्री होने के बावजूद बेटे का फर्ज निभाते हुए अपनी 80 वर्षीय मां, चोहनी देवी, का अंतिम संस्कार किया। यह घटना समाज में बेटियों के महत्व और उनके द्वारा निभाए गए दायित्वों को रेखांकित करती है।
घटना का संक्षिप्त विवरण
स्वर्गीय कमलनाथ प्रजापति की पत्नी चोहनी देवी का 26 नवंबर को हजारीबाग के शंकरपुर में उनकी बेटी रुक्मिणी के घर निधन हो गया। उनके दो पुत्र, हरिनाथ प्रजापति और शिवनंदन प्रजापति, जो क्रमशः बोकारो और दिल्ली में रहते हैं, अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। इस स्थिति में, रुक्मिणी ने खुद आगे बढ़कर खपरियावां बड़की नदी श्मशान घाट पर मां का अंतिम संस्कार किया।
रुक्मिणी, जो केरेडारी के सलगा गांव में सहायक शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं, ने अपने कार्य से यह साबित कर दिया कि बेटियां भी हर वह कर्तव्य निभा सकती हैं, जिसे परंपरागत रूप से बेटों के लिए आरक्षित माना जाता है।
परिवार की पृष्ठभूमि
- कमलनाथ प्रजापति: स्वर्गीय कमलनाथ प्रजापति डीएवी स्कूल के एक शिक्षक थे और मूल रूप से बड़कागांव के निवासी थे।
- पुत्र:
- हरिनाथ प्रजापति: बोकारो में निवास करते हैं।
- शिवनंदन प्रजापति: दिल्ली में रहते हैं।
- पुत्री रुक्मिणी: रुक्मिणी, मिथलेश प्रजापति की पत्नी, शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।
2020 में पिता के निधन के बाद, दोनों बेटों ने मां से किनारा कर लिया। इसके बाद, रुक्मिणी ने अपनी मां को अपने पास हजारीबाग लाकर उनकी देखभाल की और अंत तक उनका साथ निभाया।
रुक्मिणी ने निभाया कर्तव्य
रुक्मिणी ने समाज को यह संदेश दिया है कि बेटी और बेटा में कोई फर्क नहीं होता। उन्होंने न केवल अपनी मां की देखभाल की बल्कि उनकी अंतिम यात्रा में भी पारंपरिक पुत्र का दायित्व निभाया।
रुक्मिणी का बयान:
“पिताजी के निधन के बाद मेरी मां अकेली रह गई थीं। मेरे भाइयों ने उनका साथ छोड़ दिया था। मैंने मां को अपने पास बुलाया और उनका हर प्रकार से ख्याल रखा। आज उनके अंतिम संस्कार में शामिल होकर मैंने बेटे का फर्ज पूरा किया।”
बेटियों की बढ़ती भूमिका
यह घटना भारतीय समाज में बेटियों की भूमिका और महत्व को रेखांकित करती है। पारंपरिक तौर पर, अंतिम संस्कार जैसे अनुष्ठानों को बेटों का दायित्व माना जाता रहा है। लेकिन रुक्मिणी ने यह साबित कर दिया कि बेटियां भी परिवार की ज़िम्मेदारियों को उतनी ही खूबसूरती और समर्पण से निभा सकती हैं।
समाज के लिए संदेश
- बेटियों को समानता: यह घटना यह संदेश देती है कि बेटियों को परिवार में बेटों के समान अधिकार और जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
- परिवार का समर्थन: रुक्मिणी ने अपने परिवार के साथ मिलकर इस कार्य को अंजाम दिया, जो पारिवारिक एकता का प्रतीक है।
- समाज की सोच में बदलाव: इस घटना से समाज को बेटियों के प्रति अपनी सोच बदलने की प्रेरणा मिलती है।
रुक्मिणी के कार्य को मिली सराहना
स्थानीय लोगों और समाज के अन्य वर्गों ने रुक्मिणी के इस कार्य की सराहना की है। उनके साहस और समर्पण ने सभी को भावुक कर दिया और यह दिखा दिया कि बेटियां परिवार की रीढ़ होती हैं।
निष्कर्ष
रुक्मिणी प्रजापति का यह कार्य समाज के लिए प्रेरणा है। उन्होंने न केवल अपनी मां के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन किया बल्कि इस विचार को भी बढ़ावा दिया कि बेटियां भी बेटे से कम नहीं होतीं। ऐसे उदाहरण भारतीय समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक हो सकते हैं, जहां बेटियों को केवल दायित्व नहीं बल्कि अधिकार भी दिए जाएं।
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