Published by :- Sourav Soni
Updated on: Monday, 20 Jan 2025
हाल ही में ऑक्सफैम की “टेकर्स नॉट मेकर्स” रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन ने अपने औपनिवेशिक शासनकाल (1765-1900) के दौरान भारत से लगभग 64.8 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटी। यह आंकड़ा न केवल ऐतिहासिक अन्याय को दर्शाता है बल्कि यह भी दिखाता है कि ब्रिटेन की समृद्धि किस तरह भारत की कीमत पर निर्मित हुई।
Contents
- 1 लूट की कीमत और पीढ़ियों पर प्रभाव
- 2 माफी के बिना “माफी” की उम्मीद?
- 3 जर्मनी से सबक ले सकता है ब्रिटेन
- 4 64.8 ट्रिलियन डॉलर: एक याद दिलाने वाला तथ्य
- 5 क्या होगा आगे?
- 6 इतिहास से सवाल
- 7 1. ऑक्सफैम की “टेकर्स नॉट मेकर्स” रिपोर्ट क्या है?
- 8 2. 64.8 ट्रिलियन डॉलर की यह लूट कब और कैसे हुई?
- 9 3. क्या ब्रिटेन ने कभी अपने औपनिवेशिक अत्याचारों के लिए माफी मांगी है?
- 10 4. भारत से लूटे गए धन का ब्रिटेन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- 11 5. ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
- 12 6. क्या भारत ने कभी ब्रिटेन से मुआवजे की मांग की है?
- 13 7. जर्मनी ने अपने इतिहास से कैसे सीखा, और ब्रिटेन क्यों पीछे है?
- 14 8. क्या भारत ने ब्रिटेन को माफ कर दिया है?
- 15 9. ऑक्सफैम रिपोर्ट का क्या उद्देश्य है?
- 16 10. ब्रिटेन और भारत के वर्तमान संबंध कैसे हैं?
- 17 11. क्या ब्रिटेन से भारत को यह धन वापस मिल सकता है?
- 18 12. इस रिपोर्ट का भारत और ग्लोबल साउथ पर क्या संदेश है?
- 19 13. इतिहास से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल क्या हैं?
- 20 14. भारत के लिए इससे आगे का रास्ता क्या है?
- 21 Related
लूट की कीमत और पीढ़ियों पर प्रभाव
रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में न केवल धनी अभिजात वर्ग को फायदा हुआ, बल्कि मध्यम वर्ग भी इस लूट से समृद्ध हुआ। ब्रिटेन में यह धारणा बनाई गई है कि भारत से लूटा गया धन केवल शीर्ष 1% या 2% तक सीमित रहा। लेकिन ऑक्सफैम की रिपोर्ट इस मिथक को तोड़ती है और दर्शाती है कि यह धन ब्रिटेन के मध्यम वर्ग तक पहुंचा और पीढ़ियों तक उनकी समृद्धि का आधार बना।
इसके विपरीत, भारत ने इस लूट की भारी कीमत चुकाई। लाखों लोग गरीबी और भुखमरी का शिकार हुए। बंगाल का अकाल, जिसमें चर्चिल की नीतियों ने लाखों लोगों की जान ली, जलियांवाला बाग हत्याकांड, और विभाजन का दर्द – ये सब ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीतियों के दुष्परिणाम थे।
माफी के बिना “माफी” की उम्मीद?
रिपोर्ट के साथ एक और अहम मुद्दा सामने आया है – क्या भारत ने ब्रिटेन को इस अन्याय के लिए वास्तव में माफ कर दिया है? हाल ही में, ब्रिटेन के म्यूजिक बैंड कोल्डप्ले के लीड सिंगर क्रिस मार्टिन ने भारत में कहा, “थैंक यू फॉर फॉरगिविंग अस फॉर द बैड थिंग्स।” उन्होंने यह बयान देते हुए मान लिया कि भारत ने ब्रिटेन के औपनिवेशिक अपराधों को माफ कर दिया है।
लेकिन क्या यह सच है? इस सवाल का जवाब जटिल है क्योंकि ब्रिटेन ने कभी भी अपने अत्याचारों के लिए माफी नहीं मांगी। जलियांवाला बाग हत्याकांड हो या भारत से धन का शोषण, ब्रिटेन के किसी भी प्रधानमंत्री ने अब तक औपचारिक रूप से माफी नहीं मांगी है।
जर्मनी से सबक ले सकता है ब्रिटेन
जर्मनी ने यह दिखाया है कि इतिहास के अपराधों को स्वीकार करना और माफी मांगना न केवल उचित है, बल्कि इससे देशों के बीच संबंध मजबूत हो सकते हैं। जर्मनी ने होलोकॉस्ट पीड़ितों और इज़राइल को अरबों डॉलर का मुआवजा दिया और बार-बार माफी मांगी।
भारत, जो आज एक उभरती हुई महाशक्ति है, ने ब्रिटेन से न तो मुआवजे की मांग की है और न ही संपत्ति की वापसी की। लेकिन क्या कम से कम एक माफी अपेक्षित नहीं है?
64.8 ट्रिलियन डॉलर: एक याद दिलाने वाला तथ्य
भारत से लूटे गए इस धन का मूल्यांकन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी किया जाना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि आपसी एकता की कमी ने हमारे देश को किस हद तक कमजोर किया। यह तथ्य हमारे लिए एक चेतावनी है कि हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए।
क्या होगा आगे?
यह स्पष्ट है कि 64.8 ट्रिलियन डॉलर जैसे बड़े आंकड़े अब लौटने वाले नहीं हैं। लेकिन ब्रिटेन यदि माफी मांगता है तो यह भारत और ब्रिटेन के संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जा सकता है। यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम होगा, जो एक सशक्त और समान भविष्य की नींव रखेगा।
इतिहास से सवाल
आखिर में, एक ऐतिहासिक सवाल: 1608 में कौन से मुगल बादशाह के शासन में ब्रिटिश व्यापारी विलियम हॉकिंस ने मुगल दरबार में प्रवेश किया और व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की?
(क) अकबर
(ख) बाबर
(ग) जहांगीर
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निष्कर्ष:
ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट भारत के लिए एक बार फिर याद दिलाने वाला तथ्य है कि अतीत के इस अन्याय को भूला नहीं जा सकता। भारत ने अपनी स्थिति को काफी हद तक सुधारा है, लेकिन यह जरूरी है कि ब्रिटेन भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी स्वीकार करे। क्या भारत के लोग ब्रिटेन की माफी का इंतजार करेंगे, या इसे केवल एक इतिहास मानकर आगे बढ़ जाएंगे? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हमें भविष्य में मिलेगा।