गांधी जयंती: महात्मा गांधी का पटना से गहरा संबंध, चंपारण सत्याग्रह से बापू टावर तक की अमूल्य स्मृतियाँ
गांधी जयंती: पटना के गांधी संग्रहालय में आज “मोहन से महात्मा” के सफर की प्रदर्शनी का उद्घाटन होगा। इसके साथ ही, महात्मा गांधी की जयंती पर पटनावासियों को बापू टावर का सबसे बड़ा तोहफा भी मिलने वाला है।
By Roshan Soni October 2, 2024 7 : 00 AM
गांधी जयंती: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बिहार के प्रति विशेष लगाव था। चंपारण आंदोलन से लेकर पटना के गांधी आश्रम तक, बापू की कई यादें इस धरती से जुड़ी हैं। आज, भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, उनके विचार हमें आगे बढ़ने और कुछ अच्छा करने की प्रेरणा देते रहते हैं। पटना में गांधी से संबंधित कई स्मृतियाँ हैं, जिनमें आज से ‘बापू टावर’ का नाम भी जुड़ जाएगा।
गांधी जी पहली बार 10 अप्रैल 1917 को पटना आए थे, जब वे कोलकाता से तृतीय श्रेणी की रेलगाड़ी में यात्रा करते हुए पहुंचे। उस समय पटना जंक्शन को बांकीपुर जंक्शन के नाम से जाना जाता था। यह उनके लिए बिहार की धरती पर पहला कदम था। चंपारण सत्याग्रह, बिहार विद्यापीठ की स्थापना और आजादी के बाद बिहार में हुए दंगों के सिलसिले में बापू का लगातार पटना आना-जाना लगा रहा।
पं राजकुमार शुक्ल के साथ पहली बार पटना आये थे बापू
स्वतंत्रता सेनानी व चंपारण के रहने वाले पं राजकुमार शुक्ल की जिद पर ही महात्मा गांधी पहली बार उनके साथ 10 अप्रैल को 1917 को पटना आये थे. गांधी के पटना आने का समाचार मालूम होने के बाद उनके पुराने मित्र मौलाना मजहरूल हक साहब अपनी मोटरगाड़ी से उन्हें फ्रेजर रोड स्थित अपने घर ‘सिकंदर मंजिल’ ले गये. वहां कुछ देर रहने के बाद बापू दीघा घाट से स्टीमर के सहारे पहलेजा घाट पहुंचे. घाट से गाड़ी पकड़कर सोनपुर और फिर ट्रेन पकड़कर मुजफ्फरपुर गये.
चार जून 1917 को तार भेजकर पटना बुलाया गया
29 मई 1917 को बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गेट ने पत्र लिखकर गांधी को चार जून 1917 को रांची में मिलने के लिए आमंत्रित किया था. गांधी का दल कोई मौका खोना नहीं चाहता था. फिर मदन मोहन मालवीय को एक तार भेजकर पटना बुलाया गया. गांधी ने कस्तूरबा और अपने कनिष्ठ पुत्र देवदास को रांची में मिलने के लिए बुलाया. गांधीजी, ब्रजकिशोर बाबू के साथ रवाना हुए और दो जून 1917 को दोपहर में पटना पहुंचे. बैठक करने के बाद गांधी उसी शाम रांची के लिए प्रस्थान कर गये.
तीन जून को दरभंगा हाउस में हुई थी बैठक
महात्मा गांधी ने तीन जून 1917 को पटना के पीरबहोर में स्थित दरभंगा हाउस में एक गोपनीय बैठक में भाग लिया। इस बैठक में कई प्रमुख व्यक्ति शामिल थे, जिनमें मौलाना मजहरूल हक, मदन मोहन मालवीय, हथुआ के महाराज बहादुर राय बहादुर कृष्ण शाही, मोहम्मद मुसा, युसूफ, राम गोपाल चौधरी, एक्सप्रेस के प्रबंधक कृष्णा प्रसाद और दरभंगा महाराज के आप्त सचिव शामिल थे। इसके बाद, गांधी जी सात जून 1917 को रांची से कस्तूरबा के साथ पटना लौटे। फिर उन्होंने 1918 में दोबारा पटना का दौरा किया।
एक दिसंबर 1920 को मजहरूल हक से मिले
महात्मा गांधी ने तीसरी बार पटना का दौरा एक दिसंबर 1920 को किया। इस दौरान वे सदाकत आश्रम में मौलाना मजहरूल हक के साथ रहे। इसके बाद, दो दिसंबर को उन्होंने फुलवारीशरीफ का दौरा किया और फिर तीन दिसंबर को वापस आश्रम में लौट आए।
बापू ने रखी थी बिहार विद्यापीठ की आधारशिला
महात्मा गांधी चौथी बार छह फरवरी 1921 को पटना आए, जहाँ उन्होंने बिहार विद्यापीठ की आधारशिला रखी। इसके लिए उन्होंने झरिया के एक गुजराती कारोबारी से 60 हजार रुपये चंदा लेकर पटना पहुंचे थे।
सितंबर 1925 में कांग्रेस कमिटी की बैठक के दौरान, बापू सदाकत आश्रम में ठहरे थे। बिहार विद्यापीठ, सदाकत आश्रम और गांधी शिविर उनके प्रिय स्थल थे। इस विद्यापीठ से महात्मा गांधी के अलावा देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, स्वतंत्रता सेनानी ब्रजकिशोर प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक और जयप्रकाश नारायण जैसे कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों का गहरा संबंध रहा। मौलाना मजहरूल हक को विद्यापीठ का पहला कुलपति और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पहला प्राचार्य बनाया गया।
विद्यापीठ में चरखा चलाने की शिक्षा दी जाती थी
1957-1965 तक विद्यापीठ में खादी और चरखा चलाने की शिक्षा दी जाती थी. इसी विद्यापीठ परिसर में मार्च 1921 तक असहयोग आंदोलन से जुड़े लगभग पांच सौ से अधिक छात्रों ने नामांकन कराया था. 1921 में बापू ने अशोक राजपथ स्थित खुदाबख्श लाइब्रेरी का भी भ्रमण किया था. 20 मार्च 1934 को अस्पृश्यता निवारण आंदोलन के सिलसिले में महात्मा गांधी मंगल तालाब पटना सिटी में सार्वजनिक सभा को संबोधित करने पहुंचे थे.
गांधी के शांति प्रयासों का गवाह बना एएन सिन्हा
राजधानी के गांधी मैदान के उत्तर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट परिसर में गांधी शिविर है. यह भवन आरंभ के दिनों में मुस्लिम कांग्रेस नेता सैयद महमूद का आवास हुआ करता था. यहां बापू करीब 40 दिन रहे. वे यहां रहकर डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा समेत अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ बिहार के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे.पांच मार्च 1947 को इसी भवन में बापू निर्मल कुमार बोस, मनु गांधी समेत अन्य व्यक्तियों के साथ समय बिताये थे. जब 30 मार्च 1947 को लार्ड माउंटबेटन का बुलावा आया तो, गांधीजी यहीं से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे.
गांधी मैदान में बापू करते थे प्रार्थना
आजादी से पहले, अंग्रेजों का रेसकोर्स के नाम से जाना जाने वाला बांकीपुर लॉन आज गांधी मैदान के नाम से प्रसिद्ध है। लगभग 60 एकड़ में फैला यह मैदान अंग्रेजी हुकूमत के दौरान कई वर्षों तक रेसकोर्स के रूप में उपयोग होता रहा। 1942 में, बापू यहां हर दिन प्रार्थना सभा आयोजित करते थे।
गांधीजी की हत्या के बाद, 1948 में बांकीपुर लॉन का नाम बदलकर गांधी मैदान रखा गया। जहां बापू प्रार्थना किया करते थे, वहां आज उनकी कांस्य से बनी 40 फीट ऊंची प्रतिमा स्थित है।
गांधी संग्रहालय में मौजूद हैं बापू की स्मृतियाँ
गांधी मैदान के एक कोने में स्थित गांधी संग्रहालय का हर कोना बापू की स्मृतियों में रचा-बसा है। यहाँ गांधीजी से जुड़ी अनेक यादें ताजा होती हैं। संग्रहालय परिसर में बापू की एक प्रतिमा है, जिसे 1975 में पद्मश्री कलाकार उपेंद्र महारथी ने बनाया था। इसके अलावा, गांधीजी के निधन के बाद देश के प्रमुख नेताओं द्वारा अर्पित की गई श्रद्धांजलियाँ भी यहाँ प्रदर्शित की गई हैं।
छुआछूत निवारण को लेकर बापू देवघर भी गए थे
बैद्यनाथ धाम देवघर में भी महात्मा गांधी से जुड़ी कई स्मृतियाँ हैं। छुआछूत निवारण के लिए वे 25 अप्रैल 1934 को देवघर पहुँचे थे, जब हरिजनों को मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गया था। इस मामले को सुलझाने के लिए गांधीजी वहां पहुंचे, लेकिन पंडों ने उन पर हमला कर दिया। इस स्थिति में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गांधीजी की रक्षा करते हुए उन्हें बिजली कोठी पहुंचाया।
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